प्रयागराज: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सीजेआई बीआर गवई के अनुरोध के बाद अपनी उस टिप्पणी को हटा दिया, जिसमें उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज प्रशांत कुमार की आलोचना की थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि रिटायरमेंट तक जज प्रशांत कुमार को क्रिमिनल मामले न दिए जाएं। इसके विरोध में गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के 13 जजों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ फुल कोर्ट मीटिंग बुलाने की मांग की थी।
यह मामला एक सिविल विवाद के मामले में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति देने से जुड़ा था। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसका उद्देश्य जज को शर्मिंदा करना या उनके खिलाफ कोई टिप्पणी करना नहीं था। जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने दोहराया कि यह टिप्पणी न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने के लिए की गई थी।
SC ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पर छोड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि यह टिप्पणी सीजेआई बीआर गवई के अनुरोध पर हटाई जा रही है, जिन्होंने मामले पर पुनर्विचार करने को कहा था। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को ‘मास्टर ऑफ द रोस्टर’ मानते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला उन पर छोड़ दिया कि वह इस मामले में जो उचित समझें, वह कदम उठाएं।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटाने का आदेश जारी किया था। जस्टिस प्रशांत कुमार ने एक सिविल विवाद में क्रिमिनल समन सही ठहराया था। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने इसे गंभीर गलती मानते हुए कहा था- इन्हें (प्रशांत कुमार) को रिटायरमेंट तक क्रिमिनल केस की जिम्मेदारी न दी जाए। इस तरह के आदेश न्याय व्यवस्था का मजाक बनाते हैं। हमें समझ नहीं आता कि हाईकोर्ट स्तर पर भारतीय न्यायपालिका में क्या हो रहा है।
हाईकोर्ट चीफ जस्टिस को लेटर लिखकर आदेश पर जताया दु:ख
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अरिंदम सिन्हा ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भंसाली को लेटर लिखा था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हैरानी और दुख जताया। लिखा- 4 अगस्त का आदेश बिना नोटिस जारी किया गया। इसमें जस्टिस प्रशांत कुमार के खिलाफ तीखी टिप्पणियां की गई हैं।
लेटर पर 12 अन्य जजों के भी हस्ताक्षर
जस्टिस अरिंदम सिन्हा ने लेटर में सुझाव दिया था कि सुप्रीम कोर्ट के पास हाई कोर्ट्स के प्रशासनिक पर्यवेक्षण का अधिकार नहीं है। फुल कोर्ट मीटिंग के जरिए आदेश की भाषा और लहजे पर भी नाराजगी दर्ज कराई जाए। लेटर पर 12 अन्य जजों के भी हस्ताक्षर थे।