नई दिल्ली: देश की शीर्ष अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (27 नवंबर) को सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट रोकने और दिव्यांगों का मजाक उड़ाए जाने के खिलाफ दो आदेश जारी किए। पहला आदेश- केंद्र सरकार कंटेंट पॉलिसी को लेकर 4 हफ्तों में नियम बनाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सोशल मीडिया पर डाले जाने वाले एडल्ट कंटेंट के लिए किसी न किसी को जिम्मेदार लेनी ही होगी। जब तक गंदा (अश्लील) कंटेंट रोका जाता है, तब तक लाखों लोग देख लेते हैं।
दूसरा आदेश- दिव्यागों का मजाक उड़ाने वाले समय रैना अपने शो में सफलता की कहानियां दिखाएं, जिससे उनकी मदद के लिए फंड इकठ्ठा किया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आप (सरकार) SC/ST Act की तरह ही एक बहुत सख्त कानून के बारे में क्यों नहीं सोचते, जहां किसी को नीचा दिखाने पर सजा हो?
इंडियाज गॉट लेटेंट शो से जुड़े केस में टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने यह दोनों टिप्पणी इंडियाज गॉट लेटेंट से जुड़े केस में की। ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ स्टैंड अप कॉमेडियन समय रैना का शो है। इस शो में बोल्ड कॉमेडी कंटेंट होता है। जिन दो शो पर विवाद हुआ वह फरवरी को रिलीज हुआ था। इस शो में पेरेंट्स और महिलाओं को लेकर ऐसी बातें कही गईं, जिनका जिक्र नहीं किया जा सकता है।
वहीं, दूसरे शो में दिव्यागों का मजाक उड़ाया गया था। दोनों एपिसोड फरवरी में सामने आने के बाद समय रैना और रणवीर अल्लाहबादिया पर महाराष्ट्र, असम सहित कई जगहों पर FIR दर्ज की गईं। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था।
कोर्ट रूम में हुई बहस
SG तुषार मेहता: कोर्ट के सामने मामला सिर्फ अश्लीलता से नहीं, बल्कि गलत इस्तेमाल से जुड़ा है। बोलने की आजादी एक बहुत कीमती अधिकार है, लेकिन इसका गलत इस्तेमाल हो रहा है।
CJI सूर्यकांत: यही समस्या है, मान लीजिए मैं अपना चैनल बनाता हूं। मैं कुछ भी अपलोड करूं, मैं किसी के प्रति जवाबदेह नहीं हूं। ऐसे मामलों में किसी को तो जवाबदेही लेनी होगी।
जस्टिस जॉयमाल्या बागची: जहां कंटेंट को एंटी-नेशनल माना जाता है। क्या कंटेंट बनाने वाला इसकी जिम्मेदारी लेगा? एक बार जब गंदा मटीरियल अपलोड हो जाता है, जब तक अथॉरिटी रिएक्ट करती हैं, तब तक वह लाखों व्यूअर्स तक वायरल हो चुका होता है। तो आप इसे कैसे कंट्रोल करेंगे?
एडवोकेट प्रशांत भूषण: किसी भी कंटेंट को ‘एंटी-नेशनल’ कह देना कई बार फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है।
जस्टिस बागची ने जवाब दिया: एंटी-नेशनल की बातों को भूल जाइए, मान लीजिए कोई वीडियो है जो दिखाता है कि कोई हिस्सा भारत का अंग नहीं है, तो आप उसके बारे में क्या करेंगे?
प्रशांत भूषण ने तर्क दिया: ऐसे वीडियो हैं, जिनमें चर्चा की गई है कि कोई राज्य भारत का हिस्सा कैसे बना। कोई इतिहास पर एकेडमिक पेपर लिख सकता है, कोई किसी खास COVID-19 वैक्सीन के खतरों के बारे में लिख सकता है।
SG मेहता ने आपत्ति जताई: आप भड़का रहे हैं, ये उदाहरण न दें।
CJI सूर्यकांत: इसीलिए हम एक ऑटोनॉमस बॉडी की वकालत कर रहे हैं। इस समाज में, बच्चों को भी अपनी बात कहने का फंडामेंटल राइट है। इसके बाद कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि अगर मॉनिटरिंग मैकेनिज्म मौजूद है तो ऐसे मामले क्यों सामने आते रहते हैं? इसके बाद कोर्ट ने केंद्र को यूजर-जनरेटेड सोशल मीडिया कंटेंट से निपटने के लिए रेगुलेशन लाने के लिए चार हफ्ते का समय दिया।
जस्टिस बागची: ऐसे कंटेंट पर एक साफ चेतावनी होनी चाहिए, जिससे कोई इसे देखकर परेशान न हो जाए। यह चेतावनी सिर्फ 18+ वालों के लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए हो, जो यह देख रहा है।
CJI सूर्यकांत: एक लाइन की वॉर्निंग और फिर वीडियो शुरू हो जाता है, इससे प्रॉब्लम होती है। जब तक इंसान वॉर्निंग समझता है, तब तक वह निकल जाता है। हम कह रहे हैं कि वॉर्निंग 2 सेकंड के लिए हो। फिर शायद आपका आधार कार्ड वगैरह मांगा जाए, ताकि आपकी उम्र वेरिफाई हो सके और फिर प्रोग्राम शुरू हो। हालांकि, उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक सुझाव है।